पुरवाईयों में खिले फूल को, अब आँधियों का सहारा है,

पुरवाईयों में खिले फूल को, अब आँधियों का सहारा है,
साहिल पर डूबती कश्ती को, बवंडरों में मिला किनारा है।
किस्मत की लकीरों पर, कहाँ लिखा नाम हमारा है,
खंजर जैसे रास्तों ने, पैरों को यूँ पुकारा है।
मोहब्बत फिर एक बार हो सके, इस दिल को कहाँ गंवारा है,
ढलती है हर शाम वहीँ, जहां यादों का बहता शिकारा है।
जज़्बातों की आवारगी को, बेजुबानियों में उतारा है,
तेरे साये से लिपटकर रो सकें, कहाँ मिलता वो गलियारा है।
नींद ने भी मेरे ख़्वाबों को, बड़ी शिद्दत से नकारा है,
सिरहाने बैठकर थपकियाँ देता, अब सितारों का नज़ारा है।
छूती हैं बारिशें जब भी, लगता है साथ तुम्हारा है,
यूँ हीं पूरी हैं अधूरी दुआएं मेरी, मौसम ने किया इशारा है।
वक़्त की बेरुखी को, बेखुदी का गुजारा है,
फ़लसफ़ा-ए-ज़िन्दगी को, अब तो कांपती मुस्कुराहटों ने संवारा है।
एक ज़िद्द है तुझे पाने की पर, जन्मों का अँधियारा है,
पार क्षितिज के मिलेंगे फिर अजनबी बनकर, जहां मिलन का उजियारा है।