“कल्पनाशील जीवन का यथार्थ के तूफानों से टकराना हीं नियति है।”
शांत समंदर की सुनहरी रेत और निर्जन से उस स्थान पर, भावहीन नेत्र और रुग्ण अवस्था में जाने कहाँ से वो वृद्ध आ पहुँचते हैं। अपने स्वयं की पहचान को विस्मृत कर चुके उन वृद्ध की आँखों में दिखते हैं तो बस सवाल, और व्यक्तित्व में है तो बस जीवन के प्रति उपेक्षा और संसार के त्याग की प्रगाढ़ भावना।
ध्वनि शर्मा, एक प्रसिद्ध चित्रकार! शांत, अंतर्मुखी और कर्त्तव्यनिष्ठ। एक सड़क हादसे में अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद, स्वयं को उनकी मृत्यु का दोषी मानते हुए अपने जीवन से संघर्षरत और हर क्षण एक ग्लानि में जीती हुई। मुंबई से विलुप्पुरम का सफर कर अपनी नानी के वृद्धाश्रम को संभालती और अपने रंगहीन एवं बिखरे हुए जीवन में अपने चित्रों के माध्यम से रंग भरने की कोशिशें करती।
अर्जुन नायर, एक सॉफ्टवेयर डेवलपर! यथार्थवादी, सकारात्मक, सफल और परिष्कृत। कुआलालम्पुर में स्वयं को एक उद्यमी के रूप में व्यवस्थित करने के सालों बाद अपने देश लौटता है, और चेन्नई में अपनी जड़ें तलाशने पहुँचता है। जहां उसे मिलती हैं तो बस निराशाएं और एक तलाश, जो उसके आगे के सफर, और भविष्य दोनों का निर्धारण करती है।
इन तीन ज़िंदगियों का व्यक्तिगत सफर जब साझा होता है, तो समाज और जीवन के कई अनदेखे और अनछुए पहलुओं को उजागर करता है। संबंधों की नयी धुरी सामने आती है, और प्रेम एवं समर्पण, कर्तव्यों को परिभाषित करते मिलते हैं।
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