वो शब्द जो ख़ामोशियों में छिप कर आते हैं, हमारे ज़हन को निःशब्द कर के जाते हैं।
उस घने जंगल के अविश्वसनीय अन्धकार और असीम प्राकृतिक ख़ूबसूरती को लांघते हुए, अचानक एक दिन वो बच्ची शहर की भीड़ तक पहुँच जाती है। पशुसदृश्य हरकतों और ख़ामोशी में लिप्त उस बच्ची के पास ना तो कोई अतीत है, और ना हीं कोई पहचान। उसके ज़हन में गूंजती हैं तो बस डरवाने सपनों की चीखें, शरीर और मन पर हैं, तो बस असहनीय ज़ख्मों के निशान, और व्यक्तित्व में है, तो बस मानवता के प्रति संदेह और अविश्वास।
नलिनी राय, एक बाल मनोचिकित्सक! सुलझी हुई, सफल एवं कर्तव्यनिष्ठ। बचपन में अपनी माँ की मृत्यु और पिता के अवसाद से लड़ते हुए भी एक सफ़ल मक़ाम हासिल करती है, पर जीवन उसे एक ऐसे मोड़ पर ले आती है, जहां वो खुद को बिखरता हुआ पाती है। अपने स्वयं के अन्धकार से लड़ने के क्रम में, वो एक ऐसी बच्ची से आ टकराती है, जिसके शब्दों और पहचान की तलाश में वो, खुद के सार्थक अस्तित्व से मिल जाती है।
राजवीर राठौड़, एक वन अधिकारी! अंतर्मुखी, परिष्कृत और ईमानदार। सुकून की तलाश में उसने जंगलों का रुख किया। उसके जीवन में काम के अलावा किसी और चीज की महत्ता नहीं थी, फिर किस्मत ने उसे ऐसी परिस्थितियों से मिलवाया, कि नए आयामों के द्वार तक वो खींचा चला आया।
पृथक-पृथक रास्तों और परिस्थितियों पर चलते इन मुसाफ़िरों की राहें जब आपस में टकरातीं हैं, एक नयी रौशनी से किस्मत इन्हें रूबरू करवाती है।
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