अनकहा शेष ..
अनकहा शेष ..
चलो छोडो
अब कुछ तो
अनकहा
शेष रह जाने दो
अपने भीतर के अवशेषों को
शब्दों का
मोहताज़ मत करो
अक्सर शब्द
चलते चलते
अपने अर्थ बदल देते हैं
शब्दों के लिबास में
भावनाएं
अपना रूप बदल लेती हैं
पल- पल बढ़ते सफर में
शब्दों के जाल में उलझ कर
अंतस की बात
अंतस से ही बेगानी हो जाती है
इसलिए
बहुत खूबसूरत है
अंतस का अनकहा
वो मधु पल
वो नयन हलाहल
वो स्पंदन
वो अनबहा
आँखों का अंजन
सब कुछ
हाँ लेकिन
तब तक
जब तक
अंतस का अनकहा
शब्दों के
अलंकरणसे दूर है
सुशील सरना