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7 Apr 2024 · 1 min read

जीवन है आँखों की पूंजी

जीवन है आँखों की पूंजी

बस, जीवन है
आँखों की पूँजी
दृश्य, अदृश्य,
परिदृश्य समूची

बार-बार कहना है क्या
लुप्त हुए लोक से क्या
बार बार दर्शन करना है
बार बार तर्पण करना है

जीवन है रागों का मेला
सुर साधन और बसेरा
चलो चलें अब सुर सजनी
सरगम सरगम है झमेला

श्रृंगारी पूनम अमावस
कृष्ण-शुक्ल पक्ष मानस
कब देखे यह सब रजनी
लेकर तारे खड़े छलनी।।

मरने पर क्या मरते हैं
मरने पर क्या करते हैं
मन पितरों की गंगा में
हम तो पाप ही धोते हैं

कहाँ जाओगे, तय नहीं है
क्या गाओगे लय नहीं है
अनकही जीवन की पारी
टूटी साँसें, मय से हारीं

एक जीवन खत्म होने से
जीवन नहीं मरा करता है
आना जाना बस है कश्ती
जीवन नहीं तरा करता है।।

सूर्यकांत

Language: Hindi
120 Views
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