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17 Jan 2024 · 2 min read

*नंगा चालीसा* #रमेशराज

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लुच्चे छिनरे सिरफिरे रहें तुम्हारे साथ,
तुम घूमो हर नीच के डाल हाथ में हाथ |

नमो नमो नंगे महाराजा,
लाज सबै पर तुम्हें न लाजा ||1||

झूठ तुम्हारे पांव दवाबै,
तुम्हें न सच्ची बात सुहाबै||2||

तुम असुरों में असुर बड़े हो,
घड़ों बीच तुम चीक घड़े हो ||3||

तुमने जबसे नाक कटायी,
और नाक पर रौनक आयी ||4||

सूपनखा तुम सँग इतरावै,
सीता को नकटी बतलावै ||5||

घूमो लिये भीम-सी काया,
काया लखि तुम पै मद छाया ||6||

सौ गज की है जीभ तुम्हारी,
जिसके आगे दुनिया हारी ||7||

तुम आओ जब पीकर पउआ,
तो बन जाते घर में हउआ ||8||

गिरगिट जैसे रूप तुम्हारे,
तुमने हर पल बादर फारे ||9||

रखो जेब में फूटी कौड़ी,
बात करो पर लम्बी-चौड़ी ||10||

बिच्छू जैसे चलन तुम्हारे,
किसके तुमने डंक न मारे ||11||

शकुनी मामा तुमसे हारा,
छल में नहीं जवाब तुम्हारा ||12||

अपनी महिमा स्वयम् बखानो,
लूट सभी को दानी मानो ||13

जयचंदों के फंदों को तुम,
रोज सराहो गंदों को तुम ||14

मगरमच्छ-सा रूप तुम्हारा,
लील गया सुख-चैन हमारा ||15

कर्कश काँव-काँव के आगे,
कोयल हारे, पल में भागे ||16

बगुला जैसी घात तुम्हारी,
कैसे बचे मीन बेचारी ||17

दिखती जितनी सूरत भोली,
वाणी में उतनी ही गोली ||18

वाणी जब छोड़े अंगारे,
अच्छे-अच्छों को संहारे ||19

जीत कमीनेपन से बाजी,
तुम बन जाते पंडित-क़ाज़ी ||20

जिसको भी तुम अपना बोलो,
केवल उसकी जेब टटोलो ||21

मेघनाद-सा तुम हुंकारो,
सबको अपशब्दों से मारो ||22

पापी की सत्ता के दौने,
कर्म तुम्हारे सभी घिनौने ||23

आदर्शों की बात करो तुम,
बात-बात में घात करो तुम ||24

रावण-कुल को सदा सराहो,
तुम सज्जन से बैर निभाओ ||25

छल की गाओ बारहमासी,
चलो हमेशा चाल सियासी ||26

खुद को गौतम बुद्ध बताओ,
मछली मारो, मुर्गा खाओ ||27

सम्प्रदाय को धर्म बताओ,
घृणा-भरे चिन्तन को लाओ ||28

मगरमच्छ की तरह जिओ तुम,
रोज किसी का खून पियो तुम ||29

तुम हो जैसे गुड़ के चैंटे,
रंग बदलने में करकैंटे ||30

जिसके सर पर हाथ फिराओ,
तुरत उसी की भस्म बनाओ ||31

रहे फूलती सदा दलाली,
जेब तुम्हारी रहे न खाली ||32

हे कउए गिद्धों के वंशज,
तुमसे पावन भारत की रज ||33

मन लिया अब हमने डरकर,
तुम कबिरा के ढाई आखर ||34

हे अधमासुर कृपा कीजिए,
हमें देख मत और खीजिए ||35

अपना कोप सरल कर लीजे,
वाणी सहज तरल कर लीजे ||36

रूप समेटो तुम मायावी,
हम पर मत यूँ होओ हावी ||37

बार-बार मत हमें पछाड़ो,
और न शेर-समान दहाड़ो ||38

मान लिया तुम ही महान हो,
अतः इधर भी दया-दान हो ||39

हे भगवन्, हे केशव ईसा,
भेंट तुम्हें नंगा-चालीसा ||40

अब न कहेंगे आपको, कभी भूलकर नंग।
केली चिरती है चिरे रह काँटे के संग ||
-रमेशराज

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