चमकती चाॅंदनी
आसमाॅं की तरफ देखा
तो चाॅंद बिखेरता अपनी
चाॅंदनी उजली उजली
चमकती बिजली सी
कभी धूप सी खिली खिली
खिलखिलाती
कल्पनाओं के शिखर पर
कवियों की प्रेम कविताओं का
तराना बनती
दमकती कली सी
आज फिर आसमाॅं में
चमकती चाॅंदनी चाॅंद की।
अंधेरी रात में
चीरती अंधेरे को
सपनों की उड़ान पर
चली हो लहराने परचम
सागर की लहरों संग
जैसे छूती हो
घाटी की तली सी
आज फिर आसमाॅं में
चमकती चाॅंदनी चाॅंद की।
तारों के शामियाने में
नाचती, बलखाती वो चाॅंदनी
जगाती उमंगें दिलों में
जैसे कोई अनसुनी कहानी
कहती हो किसी से
छेड़ती कोई सरगम नई सी
आज फिर आसमाॅं में
चमकती चाॅंदनी चाॅंद की।