कुंडलिया
कुंडलिया
सरल नही लिखना यहाँ, कोई सत्य विचार।
तलवे जो है चाटता, खाता आम अचार।।
खाता आम अचार, मुरब्बे मन-भर खाता।
सच से करके प्यार, न रोटी चटनी पाता।।
कह ‘बाबा’ मुस्काय, सच्चा अमृत लगे गरल।
इस जग में ईमान पर, लिखना नही सरल।।
©दुष्यंत ‘बाबा’