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19 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

इस लम्हे, मैं सस्ता हूँ ।
उस लम्हे, मैं मँहगा हूँ ।

राहू लील नहीं पाता,
चाँद – सरीखा टेढ़ा हूँ ।

बाहर भीड़ बहुत है मेरे,
भीतर – भीतर तन्हा हूँ ।

छोड़ूँगा अपने पीछे,
मैं वो एक ज़माना हूँ ।

गीत पिता औ’ माता का,
“ईश्वर” का अफसाना हूँ ।
०००
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी

Language: Hindi
4 Likes · 151 Views
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