ग़ज़ल

दोस्ती को इस तरह हमसे निभाना एक दिन
घर हमारे यार अब फ़ुर्सत में आना एक दिन/1
हम अभी गर्दिश में हैं गुमनाम हैं पर देखना
खोजता हमको फिरेगा ये ज़माना एक दिन/2
हम सुनाएंगे तुम्हें फ़ुर्सत से अपनी शायरी
जब इरादा तुम्हारा घर बुलाना एक दिन/3
यूँ नहीं हम भी रहेंगे अब किराए पर सदा
हम बनाएंगे यहीं पर आशियाना एक दिन/4
एक ग़लती पर सभी अच्छाइयों को आपकी
भूल जाता है यहाँ सारा ज़माना एक दिन/5
खोजते तुम फिर रहे हो मंदिरों में जो सुकूँ
पाँव तुम माँ बाप के अपने दबाना एक दिन/6
एक दिन आफ़त में डालेगा मुझे ये देखना
नाम तेरा नींद में यूं बड़बड़ाना एक दिन/7