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8 Feb 2024 · 1 min read

बस फेर है नज़र का हर कली की एक अपनी ही बेकली है

बस फेर है नज़र का हर कली की एक अपनी ही बेकली है

बस ये फेर है नज़र का
काँटों के बीच है रहती
हर कली की ये एक
अपनी ही बेकली है

आसाँ नहीं है कली के
किस्मत का फैसला भी
खिलने से भी पहले
टूटतीं भी बहुत हैं

कुछ देव धाम जातीं
तो कुछ नगरवधू की शोभा
जलना जिसे लिखा है
उनका शमशान है ठिकाना

आरम्भ से अपने अंत तक
जो खिलती पौधों ही पे अपने
काँटों के बीच रह कर भी
ख़ुश किस्मत बस वही कली है

Language: Hindi
143 Views
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