दीदार
दीदार
तेरे दीदार को हम नैन टिकाए बैठे है।
बहुत देर हो चुकी है हम हाथ मले बैठे है।
तेरी चाहत में मैने उम्र खो दिया।
जो तूने मुझसे धोखा किया।
मुसाफिर तुम भी निकले
हम मिले भी तो वहीं मिले
जहां हुए बहुत शिकवे गीले
तुम भी मिले हम भी मिले
दोष न था किसी का ये तो समय का दस्तूर है।
परिवर्तन होना ही था
द्रवित हृदय से नवीन हृदय होना था।
कविराज
संतोष कुमार मिरी
रायपुर छत्तीसगढ़