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19 May 2024 · 1 min read

चाह नहीं मुझे , बनकर मैं नेता – व्यंग्य

चाह नहीं मुझे , बनकर मैं नेता
जनता को , ठगता जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं चमचा
खुद को ही , मैं भरमाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं अंध भक्त
क्यों खुद से , धोखा खाऊँ

चाह नहीं मुझे , बनकर मैं बनकर लोभी
मोक्ष द्वार , परे हो जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं पुष्प
नेता के चरणों में , फेका जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
जनता को , टोपी पहनाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
अहंकार में , लिप्त हो जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
अधर्म मार्ग पर , बढ़ जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
जनता का दुश्मन . बन जाऊँ

नहीं मुझे , बनकर मैं नेता
जनता को , ठगता जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं चमचा
खुद को ही , मैं भरमाऊँ

1 Like · 132 Views
Books from अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
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