*आत्मश्लाघा के धनी, देते है अब ज्ञान।
*आत्मश्लाघा के धनी, देते है अब ज्ञान।
इससे उत्तम क्या रहा,विद्या का अपमान।।
गीता का व्याख्यान दे, लिप्त रहे निज देह।
कहे निराला देख लो, अंधड़ उगे सरेह।।
संजय निराला*
*आत्मश्लाघा के धनी, देते है अब ज्ञान।
इससे उत्तम क्या रहा,विद्या का अपमान।।
गीता का व्याख्यान दे, लिप्त रहे निज देह।
कहे निराला देख लो, अंधड़ उगे सरेह।।
संजय निराला*