मुक्तक

मुक्तक
———
जिनसे मिलने को हम यूं तरसते रहे,
बनके काली घटा दृग बरसते रहे।
वो आये तो ये लव खामोश थे,
हम सुबकते रहे वे शिशकते रहे।।
~राजकुमार पाल (राज)
मुक्तक
———
जिनसे मिलने को हम यूं तरसते रहे,
बनके काली घटा दृग बरसते रहे।
वो आये तो ये लव खामोश थे,
हम सुबकते रहे वे शिशकते रहे।।
~राजकुमार पाल (राज)