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11 Feb 2024 · 2 min read

मेरे पापा

पिता आपके ऋण से मैं कैसे उऋण हो पाऊँगी l
इस सुख दुःख की पगडण्डी पे कैसे चल पाऊँगी ll
बचपन से लेके आजतक जब कोई उलझन आजाती थी l
सबसे पहले पापा मुझको आपकी याद ही आती थी ll
बिना रुके और बिना थके जो मेरी बाते सुनते थे l
पापा केवल आप ही थे जो मुझको लाड बहुत करते थे ll
एक चीज़ की मांग करो तो कितनी चीज़े ले आते थे l
अपने लिए कहाँ कुछ करते बस बच्चों की चिंता करते थे ll
बीमार पडूँ यदि मैं तो उनका हाल बेहाल हो जाता था l
जब तक पूरा सही न हो जाऊ उनको चैन कहाँ ही आता था ll
छुट्टी से जब घर को आओ तो कितना खुश हो जाते थे l
बिटिया को ये दो वो दो मम्मी के पीछे पड़ जाते थे ll
कर्तब्य निभाया सब पापा ने और जीवन बीता आदर्शों पर l
खूब सुने घर समाज के ताने पर बेदाग रहा पूरा जीवन ll
गलत मार्ग न खुद अपनाया न हमको इसकी शिक्षा दी l
भ्रस्ट तंत्र से खुद लड़ बैठे न प्राणो की चिंता की ll
कैसे और किन परिस्थतियों में पापा ने अपना प्यार दिया l
भयंकर पीड़ा में थे जब वो तब भी मेरी चोट बुखार का ध्यान रहा ll
जीवन भर जिस पिता ने मुझपर निःस्वार्थ प्रेम का बौछार कियाl
उसी पिता के अंतिम क्षण में मैंने क्या ही उनका साथ दिया ll
दुःख की एक चिंगारी से भी वो हमको जलने न कभी दिए l
उसी पिता की मृत देह को हम मर्णिकर्णिका में दाह दिए ll
अब न वो लाड रहा न बिटिया सुनने का सुख रहा l
मेरी छोटी मोटी हर कविता पर शाबाशी देने वाले पिता कहाँ ll
जीते जी पापा आपको मैं ये शब्द नहीं कह पायी थी l
माफ़ी मुझको देदो पापा क्युकी बस मुझे माँ की चिंता खाती थी ll
उपकार बहुत है कृष्णा का की मुझको ऐसे पिता दिए l
पर ह्रदय पे ऐसे आघात लगे ज्यूँ ज्यूँ उनकी चिता जले ll
हृदय टूट कर गिर जाता है जब जब पापा की फोटो देखुl
मन करता है की काश समय का पहिया उल्टा कर दू ll
हम सब माटी के पुतले हैं माटी में मिल जाना है l
पर मात पिता के बिना ये जीवन बस बंजर खेत खजाना है ll
नियति के खेल के आगे कौन भला टिक पाया है l
बस यह जीवन अब अंतिम हो मुझे वापस इस दुनिआ में नहीं आना है ll

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