अश्कों की धार से
फलक रो रहा है जमीं की पुकार से
पूछती हैं कलियां भीगी बहार से
क्यूं बदन तर-बतर है अश्कों की धार से
क्या तुम भी आ रहे हो रफी साहब की मजार से
जो बदन तर-बतर है अश्कों की धार से
फलक रो रहा है जमीं की पुकार से
पूछती हैं कलियां भीगी बहार से
क्यूं बदन तर-बतर है अश्कों की धार से
क्या तुम भी आ रहे हो रफी साहब की मजार से
जो बदन तर-बतर है अश्कों की धार से