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14 Feb 2024 · 1 min read

चांदनी न मानती।

चाँद कितना खूबरसूरत ,
चांदनी न जानती।
होती न रात काली,
चाँदनी न मानती।

चाँद का मूल्य क्या है,
वो न पहचानती।
छिपता न बादलों में,
चांदनी न मानती।

चाँद कितना शीतल है,
ठंडक न जानती।
होता न सूर्यताप जो,
चाँदनी न मानती।

चाँद जो न घटता-बढ़ता
पूनम-अमावस न करता
‘दीप’ के प्रकाश सा जलता
सूरज उसी को मानती

-जारी
©कुल’दीप’ मिश्रा

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