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14 Feb 2024 · 2 min read

जन्म प्रभु श्री राम का

इक्ष्वाकु कुल में महान प्रतापी
राजा एक महात्मा दशरथ हुए,
संतान न होने की कमी से
लंबे समय तक अभिशप्त हुए।

चिंतन मनन करते-करते
खयाल उन्हें अश्वमेध यज्ञ का आया,
मंत्रणा करने महर्षि सुयोग्य,वामदेव, जाबालि, कश्यप
और कुल पुरोहित वशिष्ठ को बुलवाया।

सभी आचार्यों ने एक स्वर में
राजन की इच्छा का सम्मान किया,
यज्ञ की ईच्छा पर दी सहमति
और महाराज को आशीर्वाद दिया।

प्रस्थान कर लिया जब ऋषियों ने
मंत्री सुमंत्र ने राजन से निवेदन किया,
अश्वमेध करवाने हेतु मुनिकुमार ऋषश्रंज्ञ
के नाम का प्रस्ताव किया

आग्रह मंत्री सुमंत्र का भला
महात्मा दशरथ कैसे ठुकरा पाते,
सो निकल पड़े अंग देश लेने
ऋषश्रंज्ञ-शांता को यज्ञ के वास्ते।

किया यज्ञ प्रारंभ महर्षि ऋष श्रृंग ने
मिलकर अन्य मुनियों के संग,
इस पुत्रेष्टि यज्ञ में ली दीक्षा
अवध नरेश ने भी अपनी पत्नि के संग।

देवता सिद्ध गंधर्व और महर्षि गण
सभी पहुंचे हुए थे यज्ञ स्थल में,
सफल बना कर पाना था सबको
अपना-अपना भाग यज्ञ में

मौका देख ब्रह्मा जी को देवताओं ने
रावण के अत्याचारों से अवगत कराया
उस क्रूर के हाथों सृष्टि की रक्षा करने के
अपने निवेदन को दोहराया

ब्रम्हा जी बोले मृत्यु संभव है रावण की
केवल और केवल मानव के हाथ
देवता, गंधर्व,यक्ष और राक्षस से न मरने का
है रावण को वरदान प्राप्त

पावन यज्ञ की धरा पर तभी
प्राकट्य हुआ भगवान विष्णु का
देवताओं ने प्रकट किया निवेदन अपना
अतिचारी रावण से मुक्ति का।

हे प्रभु मानव रूप में आप ही
राजा दशरथ के घर अवतार लीजिए,
और कालांतर में समय आने पर
रणभूमि में रावण का वध कीजिए।

हुए प्रकट दैदीप्यमान पुरुष
हाथ में जांबूनद स्वर्ण परात लिए,
दिया प्रसाद खीर का राजन को
बंटवाने अपनी रानियां के लिए।

बीतीं छह ऋतुएं यज्ञ के बाद
आया समय चैत्र शुक्ल की नवमी का,
नक्षत्र पुनर्वसु था और कर्क लग्न
हुआ अवतरण राम लला का।

इसी प्रकार कैकैयी ने जन्म दिया
सत्यवादी और पराक्रमी भरत को,
वहीं सुमित्रा की तरफ
लक्ष्मण और शत्रुघ्न का अवतरण हुआ।

इति।

इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश

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