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3 Feb 2024 · 1 min read

दोहा ग़ज़ल. . .

दोहा ग़ज़ल….

उलझन तो बस एक है, जाना है उस पार ।
जग के झूठे तीर हैं, झूठी है पतवार ।

तृष्णा के अम्बर यहाँ, तृप्ति है आभास –
अवगुंठन में जीत के , मुस्काती है हार ।

विषम काल में ईश ही, काटे दुख के पाश –
मोह माया के पंक में, जीव हुआ लाचार ।

जीवन में सुख-चैन के, होते हैं दिन चन्द –
जो छूटे वो मोड़ फिर, कब लौटे हैं यार ।

मोह माया के पाश में, उलझा रहता जीव –
जकड़े रखता जीव को, मायावी संसार ।

सुशील सरना /

2 Comments · 135 Views

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