बाल कविता

मेरी दादी
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जब न होती जननी घर में,
तो माॅं का प्यार लुटाती थी।
यदि मम्मी कभी डाॅंटती थी तो,
मुझको वही बचाती थी।।
कभी मेरी गलती के ऊपर,
उसने मुझे नहीं डाॅंटा।
बनकर ढ़ाल रोक लेती थी,
पापा जी का वह चाॅंटा।।
रोज रात को लोरी गाकर,
मुझको वही सुलाती थी।
राजा रानी परियों वाले,
किस्से बहुत सुनाती थी।।
पढ़ी-लिखी ना हो करके भी,
वह तो बहुत ही ज्ञानी थी।
रामायण की सब घटनाएं
उसको याद जुबानी थीं।।
मुझ पर कोई समस्या आती,
तो बन जाती मेरी वादी।
मुझ पर प्यार लूटाने वाली,
ऐसी थी मेरी दादी।।
~राजकुमार पाल (राज)