सती सावित्री

सती सावित्री
(भारतीय नारी विभुतियां)
कहां ले जा रहे हो यमराज तुम
मेरे पतिदेव का हर कर के प्राण,
जीते जी मैं मर ही तो जाऊँगी
पतिदेव के बिना,मैं भी निष्प्राण..
ये वाक्य था,सती सावित्री का
यम के मार्ग में डटकर खड़ी थी,
जिस पथ पर अग्रसर थी वो
यमलोक तक बाधा बड़ी थी..
अश्वपति की बिटिया थी वो
सत्यवान के संग शादी करी थी,
छोड़कर राजमहल विशाल
वन में बनी वो कुटिया गयी थी..
वल्कल वसन धारण किया
वस्त्राभूषण को तजकर सती,
सास-ससुर की सेवा करती रही
सदा मानती, परमेश्वर है पति..
अग्निहोत्र की लकड़ी को लाने
पति संग में वो जंगल गयी थी,
यमराज ने मृत्युपाश फेंका
यम देख कर,वो डर सी गयी थी..
यमराज ने कहा,खुद मैं आया हूं
यमदूत आने को तैयार न था,
तेरे सतीत्व का तेज है अद्भुत
मेरी आज्ञा, उसे स्वीकार न था..
सती छोड़ दो, तुम पीछा मेरा
पथ सामने है दुर्गम घनेरा,
वर मांग लो कोई अन्य तुम
होगा बड़ा, ये सौभाग्य तेरा..
सास ससुर रहे राजमहल में
खोया हुआ उन्हें राजपाठ दो,
वर मांगी प्रथम, तब सावित्री ने
उन्हें स्वास्थ्य और दृष्टिदान दो..
तथास्तु !कहकर बढ़ चले यमराज
सत्यवान का लिए, फंदे में प्राण,
सावित्री पीछे तो मुड़ी ही नहीं
अडिग पथ पर,उसकी महिमा महान..
देखकर यमराज, झल्लाए बहुत
कहा,सावित्री एक वर और तुम मांग लो,
मृत्यु है अटल,बस प्राण उनका छोड़कर
तुम कुछ और वर,फिर से मांग लो..
मैं भी अखंड सौभाग्यवती बनूँ
यहां कभी भी, मैं न अकेली रहूँ ,
मुझे दो, सौ पुत्रों का वरदान यम
रहूँ ना अबला,मैं भी बलवती बनूँ..
तथास्तु कहकर बढ़े चले थे यम
वरदान फल से अनभिज्ञ थे,
सती ने सिखाया,नैतिकता का पाठ
पुत्र होगा कैसे,सत्यवान मृत थे..
नमित होकर तब,यमराज हुए अधीर
सावित्री के आगे,टल गयी थी होनहारी,
मुक्त किया सत्यवान का सुक्ष्म शरीर
यम ने कहा,तुम धन्य हो भारत की नारी..
नारी संस्कार की अमुल्य धरोहर है सती
पावन पर्व है भारत का, वट सावित्री व्रत,
सीखे आज कल की, शिक्षित सभी नारियां
बदल देती थी कैसे वो,लिखी हुई किस्मत..
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
©® मनोज कर्ण
कटिहार (बिहार)
तिथि –२७/०२/२०२५
फाल्गुन ,कृष्ण पक्ष,चतुर्दशी तिथि,बृहस्पतिवार
विक्रम संवत २०८१
मोबाइल न. – 8757227201
ईमेल पता – mk65ktr@gmail.com