तांदुला डैम

बालोद और दुर्ग जिले की जीवन-रेखा कही जाने वाली तांदुला बांध परियोजना बहुत खूबसूरत और मनमोहक है। यह तांदुला और सूखा नदियों के संगम पर बना है। इस जलाशय का निर्माण सन् 1912 में अंग्रेज इंजीनियर एडम स्मिथ ने कराया था। अब बालोद जिला प्रशासन इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए अनेक परियोजनाओं पर काम कर रहा है, ताकि वैश्विक स्तर पर इसकी पहचान कायम हो सके।
तांदुला बांध 827.2 वर्ग किलोमीटर यानी 319.4 वर्ग मील के जलग्रहण क्षेत्र में पानी से घिरा हुआ है। इस जलाशय की सकल जल भण्डारण क्षमता 312.25 मिलियन क्यूबिक मीटर है और उच्चतम बाढ़ का स्तर 333.415 मीटर यानी 10983.88 फीट है। यह बांध तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। तांदुला शिवनाथ की उपनदी है, जो अन्ततः महानदी में गिरती है।
तांदुला के सिवनी तरफ वाला तट को बेहतरीन रिसोर्ट के रूप में विकसित किया जा रहा है। यहाँ पर आधुनिक सुविधाओं से लैस एयर कंडीशनर कॉटेज बनवाए जा रहे हैं। इसके अलावा प्राकृतिक तम्बू और इनडोर-ऑउटडोर रेस्टोरेंट की स्थापना का कार्य भी अन्तिम चरण में है। सुन्दर सड़कें और बीच में हरे-भरे खुले मैदान काफी मनभावन लगता है। जल-संसार के खूबसूरत नजारे, वाच टॉवर, इको पार्क, रंग-बिरंगे परिधानों में आये हुए पर्यटक, नौका विहार का आनन्द और प्राकृतिक सौन्दर्य अविस्मरणीय है। यहाँ मोटर बोट और वाटर क्रूज का मजा भी लाजवाब है।
भिलाई इस्पात संयंत्र की जल आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला तांदुला डैम में सूर्योदय और सूर्यास्त के नजारे काफी मनभावन लगते हैं। तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरे होने की वजह से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति ने अपनी आँखें यहाँ भी खोली थी। गोवा बीच सा आनन्द तांदुला डैम में लिया जा सकता है। वाकई वहाँ की दृश्यावली अद्भुत है। यह पर्यटकों के लिए स्वर्ग सा लगता है। वहाँ से वापस आने को मन नहीं करता। जलाशयों द्वारा दिए जाने वाले सबक को बयां करती ये पंक्तियाँ :
वो जो ग्रहण करता
अन्ततः उसी को लौटाता
हर एक जलाशय,
पर इतना तो जरूर है
कृतघ्न नहीं होता जलाशय।
उस जल-संसार की
अद्भुत रंगीन दृश्यावली
बोनस है जलाशय का।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।