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24 Oct 2016 · 1 min read

‘ विरोधरस ‘---8. || आलम्बन के अनुभाव || +रमेशराज

विरोधरस के आलम्बनों के कायिक अनुभाव —-
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विरोध-रस के आलंबन बनने वाले अहंकारी, व्यभिचारी, अत्याचारी, ठग, धूर्त्त, शोषक और मक्कार लोग होते हैं जो कभी चैन से नहीं बैठते। ऐसे लोग यदि किसी असहाय की लात-घूंसों से पिटाई करते हैं तो कहीं दहेज के लालच में बहू को जलाकर मारने की कोशिश करते हैं। कहीं इनके हाथ रिश्वत के नोटों को गिन रहे होते है तो कहीं तिजोरियों को तोड़ रहे होते हैं। कहीं डकैती डालते वक्त किसी का सिर फोड़ रहे होते हैं।
विरोधरस के आलंबन कहीं कोरे स्टांप पेपर पर निर्धन और भोले कर्जदार के अंगूठों के निशान लगवाते हुए सेठ-साहूकार के रूप में दिखायी देते हैं तो कहीं विकलांगों पर लाठियां बरसाती पुलिस वाले बन जाते हैं। कहीं निर्दोषों के पेट में चाकू घौंपते साम्प्रदायिक तत्त्व तो कहीं अबला का शीलहरण या चीरहरण करके मूंछें तानते हुए गुण्डे-
लोग हैवान हुए दंगों में, हिंदू-मुसलमान हुए दंगों में
धर्म चाकू-सा पड़ा लोगों पर, कत्ल इन्सान हुए दंगों में।
-योगेंद्र शर्मा, कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 67

जुल्म इतना ढा गया है देखिए विकलांग वर्ष,
घाव ज्यों का त्यों हरा है लाठियों का मार का।
[अनिल कुमार अनल, कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 63]

रिश्वत चलती अच्छी-खासी खुलकर आज अदालत में,
सच्चे को लग जाती फांसी खुलकर आज अदालत में।
[सुरेश त्रस्त, कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 52 ]

फर्जी मुठभेड़ों में मारा निर्दोषों को,
पुलिस इसतरह रही सफाई अभियानों में ।
[अरुण लहरी, कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 49 ]
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+रमेशराज की पुस्तक ‘ विरोधरस ’ से
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001

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