दर्शन के प्रश्न

ब्रह्माण्ड में आकस्मिक कुछ नहीं होता है! सब कुछ योजनाबद्ध चलायमान है! अपनी अपनी धारणाओं के एकतरफा पोषण हेतु समय समय पर लोगों ने सिद्धांत प्रस्तुत किये हैं!आकस्मिकता की पैरवी करने वालों की बुद्धि और मस्तिष्क में भी यह विचार योजनाबद्ध ढंग से ही आया है, आकस्मिक नहीं! और योजनाबद्ध ढंग से इसे लोगों को बतलाया जाता रहा है!इस या अन्य सिद्धांत के पीछे निहित योजना को हम शायद समझने में असफल रहते हों, यह बात अलग है!हरेक वस्तु, घटना, परिस्थिति, विचार, सिद्धांत आदि के बहुत कम हिस्से को हम जान पाने में समर्थ होते हैं तथा अधिकांश हिस्सा अनजाना ही रह जाता है!इस अनजानेपन के कारण ही लोगों को आकस्मिकता आदि की कल्पना करने का अवसर मिल जाता है! क्या हम अपने ज्ञान की अल्पांश सीमा को मानने के लिये भयभीत नहीं हैं? ज्ञात, अज्ञात और अज्ञेय में अपने ज्ञान को विभाजित करने से हमें हमारा अहंकार रोक रहा है! यदि हममें स्पष्टता और सहजता हो तो क्या हम अपने ज्ञान की सीमा को स्वीकार करने से भयभीत होंगे? जवाब होगा बिलकुल नहीं! इस मामले में जनसाधारण की अपेक्षा बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोग अधिक दयनीय स्थिति में रहते हैं! इसे बौद्धिकों की बौद्धिक कमजोरी ही कहा जा सकता है!
-आचार्य शीलक राम