एक ग़ज़ल :- भूला है हमने
भूला है हमने
भूला है हमने ,जो हंँसने की आदत ,
मगर रोने का भी ,न दिल चाहता है…
बेखुदी में दिल भी , इतना है आहत ,
जाने ना दिल भी ,वो क्या चाहता है…
थे ख्वाबों में उनके ,हम मशगूल इतने,
पर ये इश़्क मेरी जान , फ़ना चाहता है…
कोशिश करी थी ,दिलों में हो उल्फ़त ,
पर ख़ामोश लब्ज़ ,सिर्फ़ नशा चाहता है…
रिश्तें बचाने की ,करी थी मशक़्क़त ,
रिश्तों की जिद्द है कि,वो दफ़ा चाहता है…
रब ने जो लिख दी , मेरी ये किस्मत ,
खुदा जाने क्यों ,मुझसे जफ़ा चाहता है…
मयस्सर हुई थी ,जो नजरें इनायत ,
मायूसी में सबकुछ ,गिला चाहता है…
लगाया है झूठी , दिल पे जो तोहमत ,
नादान मेरा दिल , ये दुआ चाहता है…
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०५/१२/२०२४ ,
मार्गशीर्ष,शुक्ल पक्ष, चतुर्थी, बृहस्पतिवार
विक्रम संवत २०८१
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