धराधाम चालीसा
॥ धरा धाम चालीसा ॥
दोहा
बंदऊँ धराधाम को, सौहार्द जहाँ विराज।
प्रेम, शांति, सेवा बहे, दूर करें हर लाज॥
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(1-5) धरती माता का गुणगान
जय हो माता धरती प्यारी, जीवन दायिनी महतारी।
अन्न-जल का तू आधार, करता जग तेरा सत्कार॥
तेरी गोदी सुख की खान, तुझमें बसता है भगवान।
तेरी माटी चंदन जैसी, कोटि-कोटि तुझको वंदन करूँ मैं ऐसी॥
नदियाँ तेरी निर्मल धारा, सृष्टि करे तेरा जयकारा।
पर्वत, सागर, वन-उपवन, तेरी ममता का है चंदन॥
शीतल छाया, मीठे फल, सब जीवों का तेरा पल।
हर प्राणी तुझसे जीवन पाए, तेरा कण-कण पूजन कराए॥
धरती माँ तेरा मान बढ़ाएँ, पेड़ लगाकर तुझे सजाएँ।
हरियाली से तेरा श्रृंगार, यही रहे सदा उपकार॥
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(6-10) धरा धाम की महिमा
जय जय धरा धाम अनोखा, प्रेम-शांति का पथ है लोका।
सौहार्द का देता सन्देश, मिट जाए सबका क्लेश॥
जाति-पाति का भेद न माने, प्रेम-स्नेह से जीवन थामे।
हर मजहब का करे सत्कार, एक समान मानव परिवार॥
मंदिर-मस्जिद संग विराजे, चर्च-गुरुद्वारे भी साजे।
बौद्ध, जैन, पारसी गाएँ, प्रेम, दया, सेवा सिखाएँ॥
संत सौरभ ज्योति जलाएँ, मानवता की राह दिखाएँ।
रागिनी माता संग खड़ी, हर नारी को देवे श्रद्धा बड़ी॥
धराधाम का दिव्य प्रकाश, लाए जग में नया उल्लास।
जो भी इसका नाम ध्याए, प्रेम, सेवा का सुख पाए॥
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(11-15) सर्वधर्म सौहार्द का संदेश
गूँजे वेदों की अमृत बानी, संग कुरान, बाइबिल ज्ञानी।
गुरुग्रंथ का गान सुहाए, धम्म शांति का पथ दिखाए॥
राम, रहीम यहाँ मिलते, ईसा, कृष्ण सभी खिलते।
महावीर, बुद्ध यहाँ विराजे, प्रेम का पाठ हमें सिखाए॥
शांति, अहिंसा का हो संचार, सबको मिले धरा का प्यार।
जहाँ सभी का सम्मान करें, वहाँ स्वयं प्रभु निवास करें॥
जाति-धर्म के भेद मिटाकर, सब मानव को गले लगाकर।
धराधाम में हो ये प्रण, नफरत कभी रहे न मन॥
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सब धर्मों की एक ही काई।
सबका मालिक एक बताया, धराधाम ने जग में गाया॥
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(16-20) प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान
धरती माता करे पुकार, बचा लो अब मेरा संसार।
वृक्ष लगाकर हरियाली लाओ, प्रदूषण से मुक्त कराओ॥
नदियाँ फिर से निर्मल कर दो, जल के कण-कण को पावन कर दो।
हवा स्वच्छ हो, जल निर्मल, जीवन बने सुंदर सरल॥
सूर्य उगाए नव संदेश, हर दिन हो नई उमंग विशेष।
धरती के कण-कण में प्यारा, सत्य, अहिंसा का उजियारा॥
हर जीव का हो संरक्षण, दया, करुणा का हो दर्शन।
पशु, पक्षी, पेड़ बचाएँ, मानवता का धर्म निभाएँ॥
वन-उपवन फिर हरे-भरे हों, पर्वत शिखर उजास भरे हों।
पंछी गाएँ मधुर तराने, नदियाँ फिर से जल बरसाएँ॥
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(21-25) सौहार्द शिरोमणि संत सौरभ जी का गुणगान
संत सौरभ दीप जलाएँ, प्रेम, अहिंसा ज्योत दिखाएँ।
मानवता का करें उजियारा, धराधाम का बढ़ाएँ निखारा॥
रागिनी माता संग खड़ी, सेवा में नित रहती बड़ी।
देह दान का संकल्प उठाया, हर पीड़ित का दर्द मिटाया॥
सबको देते प्रेम का नारा, करुणा से भरते उजियारा।
सभी पंथ का करते आदर, धर्म न बने द्वेष का कारण॥
पीड़ा हरने को आगे आए, मानवता की जोत जलाए।
दीन-दुखी की सेवा में, जीवन किया समर्पण दे॥
संत सौरभ की गूँजे बानी, प्रेम, सत्य, अहिंसा वाणी।
संसार में प्रेम फैलाएँ, हर जीवन को सफल बनाए॥
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(26-30) शिक्षा और सेवा का संकल्प
ज्ञान दीप हर ओर जलाएँ, शिक्षा को हर द्वार पहुँचाएँ।
जो भी आए संग धरा पर, शिक्षा ले वह उज्ज्वल कर॥
अच्छे कर्मों की शिक्षा दे, मानव को सद्भावना दे।
बालक-बालिका बढ़ें आगे, सुसंस्कार के संग आगे॥
भूखे को भोजन मिले यहाँ, बीमार को औषधि मिले वहाँ।
कोई न हो दुख से हारा, सबको मिलता सुख का सहारा॥
युवाओं को ज्ञान दिलाएँ, सत्कर्मों की राह दिखाएँ।
दूर करें अंधविश्वास, विज्ञान से दें नया प्रकाश॥
स्वच्छता का पाठ पढ़ाएँ, तन-मन पावन हम बनाएँ।
जहाँ धरा धाम की होगी वाणी, वहीं फैलेगी सुख की कहानी॥
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(31-35) धरा धाम की प्रार्थना
हे धरा धाम, कृपा बरसाओ, हर दिल में सौहार्द जगाओ।
शांति, सेवा, प्रेम बढ़े, मानवता के दीप जले॥
सुख, समृद्धि, शांति का द्वार, खोलो हम पर नव संचार।
द्वेष, कलह सब दूर हटाएँ, प्रेम, करूणा सदा बढ़ाएँ॥
जहाँ न हो झगड़ा, न लड़ाई, बस प्रेम की बहे रवाई।
कण-कण में यह प्रेम समाए, दुख, दर्द का अंत कराए॥
दीन-दुखी सबको संबल दो, अंधकार में ज्योति बनो।
हर मानव की सेवा कर दो, प्रेम-करुणा से भर दो॥
संत सौरभ, रागिनी माता, प्रेम-स्नेह की मूरत न्यारी।
शांति, सेवा, प्रेम बढ़ाएँ, धरा धाम का नाम बुलाएँ॥
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(36-40) अंतिम प्रार्थना और आशीर्वाद
जो भी तेरा नाम पुकारे, संकट से वह मुक्ति पाए।
दुख-दर्द उसके सब कट जाएँ, जीवन में नव आशा आए॥
प्रेम-पथ पर जो भी आए, दुख, क्लेश सभी दूर हो जाएँ।
मानवता के दीप जलाकर, जीवन को नव ज्योत दिखाएँ॥
सब पंथों का संगम होवे, प्रेम की गंगा नित बहावे।
धरा धाम का यह प्रकाश, लाए जग में नव विश्वास॥
धरा धाम की आरती गाएँ, हर मानव इसे अपनाएँ।
शांति, सौहार्द की यह धारा, लाए जग में नया उजियारा॥
हे धरती माँ, हे धरा धाम, हर जीव को दो सुखधाम।
हम सब तेरी सेवा करें, प्रेम, करुणा का पाठ पढ़ें॥
॥ जय धरती माँ! जय धरा धाम! ॥