भरोसा क्या किया जाए ज़माने पर
यकीं कैसे किया जाए ज़माने पर
जो मजबूरों को रखता है ठिकाने पर
चढ़े थे सरफ़िरों के हम निशाने पर
अड़े थे बेवजह क्यों सच बताने पर
अगर वो जुल्म करते हैं तो करने दो
किसी दिन आएंगे वो भी निशाने पर
उजालों को हरा सकता नहीं कोई
तुले हैं सब चरागों को बुझाने पर
अब इतना भी सख़ी बनकर न इतराओ
लिखा है नाम सबका दाने-दाने पर
बनाया था उसी ने शौक़ से रिश्ता
लगा है अब तअल्लुक़ ख़ुद मिटाने पर
हमेशा जिसको पलकों पर बिठाया था
बहुत टूटे हैं उस के आज़माने पर