Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
10 Jul 2024 · 1 min read

मासूम कोयला

एक मासूम से
लगने वाले
कोयले ने
कनक अंगार की
चादर ओढ़ ली

बिना मायनों वालों को
मायनों का
भ्रम देकर
उनकी प्यासी
लालची निगाहों को
प्रीत का
वहम देकर

गुनगुनाए गीत
कुछ छद्म
धोखों के
लबों पर सलोने
सनम लिखकर

महकाया उन्हें
सोंधी आँच वाली
खुशबू से
बहकाया उनके
जिस्मों को
दहक भरी चालाकी से
और हवस
बुझाई उनकी
आवारा चाहतों की

कुछ
वक्त की तपिश
कुछ बेईमान
शोलों की
जुंबिश के बाद

अपने
धनक रंगीन
लबादों में छिपी
खुदगर्ज़ी

और
अपने अंतर्मन में
बैठी हुई मक्कारी से
अपने चालबाज
गुमराह, हमसफर हमदम
और हमराज के रास्तों पर

बड़ी चालाकी से
सर्द फारिग होकर
उन्हें छोड़ दिया
जिंदा
लाश बनाकर

फिर
उन्हीं के चेहरों पर
ज़हर के लौ में
बुझी हुई
कुटिलता उड़ेल दी

उस क्षण
मासूम कोयले का
चेहरा निहारती रह गई!
हतप्रभ!
निष्प्राण सी!
ठंडी काली राख…..!

–कुंवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
*यह मेरी स्वरचित रचना है
*©️®️ सर्वाधिकार सुरक्षित

Loading...