धर्मयुद्ध
कुछ देश बचाने बैठे हैं,
कुछ देश मिटाने बैठे हैं।
कुछ देश सजाने की खातिर,
कुछ आग लगाने की खातिर।।
कुछ जोश जागते हैं जग का,
कुछ जोश भागते हैं सबका।
कुछ फूंक-फूंक कर चलते हैं,
कुछ कान फूंक कर चलते हैं।।
कुछ देश को अपना सोच रहे,
कुछ देश बेचना, ये सोच रहे।
कुछ सोच विचार कर चलते हैं,
कुछ बिन सोचे ही बोल रहे।।
कुछ हर पल देश को जीते हैं,
कुछ बिन मतलब के जीते हैं।
कुछ जगे हुए हैं बिन सोए,
कुछ चैन की नींद ही सोते हैं।।
कुछ देश को अपना मान चुके,
कुछ दुश्मन देश को मान चुके।
कुछ होश उड़ाते दुश्मन का,
कुछ जोश बढ़ाते दुश्मन का।।
कुछ गद्दारों का काल बने,
कुछ गद्दारों की सी बात करे।
कुछ दुनिया में हुंकार भरें,
कुछ पीठ के पीछे चुपचाप मिले।।
अब है भारतवासी तुम जाग उठो,
पहचान करो सम्मान करो।
सदियों से तुम सोए हो,
अब सही गलत का ज्ञान करो।।
अब आंखें खोलो जाग उठो,
जो नहीं देश का पहचान करो।
कुछ लूट चुके थे सदियों तक,
कुछ लूट रहे थे अब तक भी।।
कुछ साथ तुम्हारा अब चाहे,
कुछ तुमको भटकाना चाहे।
तुम आँखें खोल लो अब अपनी,
तुम राह भटकना पाओ अब।।
ललकार भारद्वाज