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24 May 2024 · 1 min read

मेरी जिंदगी की दास्ताँ ।

मेरी जिंदगी की दास्ताँ ।

धूप में तपता रहा
ठंड में ठिठुरता रहा
आंधी और तूफान में
भींगता रहा भागता रहा
शरण नहीं दिया कोई
हाल हो गया था खास्ता।
मगर कोई सुना नहीं
मेरी जिन्दगी की दास्ताँ ।

रास्ता बहुत सुनसान था
सुनकर भी बेजुबान था
देखता रहा नजारा मैं
अपनों के अपमान का
हर पल उपजता रहा
दिल में नई-नई वास्ता
मगर कोई सूना नहीं
मेरी जिन्दगी की दास्ताँ।

कभी मिले सम्मान तो
कभी मिले शिकवे गिले
जिन्दगी की राह में
मिले बहुत हैं सिरफिरे
पुकारता रहा सदा पर
स्वर मेरा था कांपता
मगर कोई सूना नहीं
मेरी जिन्दगी की दास्ताँ ।

हर समय हर हाल में
रहा सदा गतिमान मैं
पीता रहा अपमान विष
पर करता रहा सम्मान मैं
सिला नहीं दिया कोई
न कोई मुझे है आंकता
मगर कोई सुना नहीं
मेरी जिंदगी की दास्ताँ

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