प्रिय पाठक,
यह “चुप्पी का शोर” पुस्तक आपके हाथों में सौंपते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं बचपन से ही कविताओं का दीवाना रहा हूँ और मेरे लिए कविता हमेशा आत्मा की आवाज़ रही है। किशोरावस्था में लिखी गई कविताएं कहीं खो गईं या भूल-चूक में बर्बाद हो गईं। युवावस्था बाल-बच्चों की देखभाल में बीत गई। जब बच्चे बड़े हो गए और अपनी जिम्मेदारियां संभालने लगे, तो मेरे भीतर की कविताएं फिर से अंकुरित होने लगीं और दिल की धरती से बाहर आकर खिलने लगीं, जैसे लंबे समय से सूखे पौधे को फिर से पानी मिलने पर वह हरा-भरा हो जाता है।
इस पुस्तक की कविताएं मेरे दिल की गहराइयों से निकली हैं और इनमें मेरे जीवन के विभिन्न अनुभवों, संवेदनाओं और विचारों का मेल है।
इस पुस्तक का विचार मेरे मन में तब आया जब मैंने समाज के विभिन्न पहलुओं और व्यक्तिगत संघर्षों को करीब से देखा और महसूस किया। मेरी हर कविता अपने आप में एक कहानी, एक भावना है, जो किसी न किसी रूप में आपसे जुड़ने का प्रयास करेगी। जैसे एक नदी की धारा, जो अपनी राह में आने वाली हर चीज से मिलती है।
लेखन मेरे लिए आत्म-अन्वेषण की यात्रा रही है। इस सफर में मैंने अपने भीतर छिपे प्रश्नों के जवाब ढूंढने की कोशिश की है और इन कविताओं के माध्यम से उन्हें शब्दों में पिरोया है। हर कविता में मैंने जीवन के विभिन्न रंगों को समेटने की कोशिश की है, जैसे एक चित्रकार अपनी पेंटिंग में हर रंग का इस्तेमाल करता है।
मुझे यकीन है कि इस पुस्तक को पढ़ते समय आपको भी वही अनुभव होंगे, जो मुझे इन्हें लिखते समय हुए। आपकी प्रतिक्रियाएं और सुझाव मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं और मैं आपसे बात करने के लिए बहुत उत्सुक हूँ।
अंत में, मैं अपने परिवार, मित्रों और सभी शुभचिंतकों का धन्यवाद करना चाहता हूँ, जिनके समर्थन और प्रेरणा से यह पुस्तक संभव हो सकी है। विशेष रूप से मैं साहित्य पीडिया टीम को धन्यवाद देना चाहूँगा, जिनके सहयोग और मार्गदर्शन के बिना इन रचनाओं को संपादित करना आसान न था।
आशा है, यह पुस्तक आपको अवश्य पसंद आएगी और आपके दिल को छू सकेगी। मुझे पूरा विश्वास है कि आप सबका आशीर्वाद मुझे प्राप्त होगा।
सादर, सप्रेम और सधन्यवाद,
आपका चिर शुभेक्षु,
एम महाराज
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