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12 Feb 2024 · 1 min read

खत

जब चिट्ठी आती थी ,
तो अपनापन आता था।
उस एक चिट्ठी में
सारा संसार होता था।

अगल बगल
इधर उधर
सबकी चर्चा से
बाग बगीचे
बेमौसम होती
बरखा से
उस चिट्ठी का
हर कोना
गुंजार होता था।
उस एक चिट्ठी में
सारा संसार होता था।

खत को लेने खुद ही,
डाकखाने जाते थे।
बार- बार पढते थे ,
उस खत को यों गुनते थे।
उस खत के अनकहे,
अलिखे ,भाव भी सुनते थे।
उस चिट्ठी का ,
रात- दिन इंतजार होता था।

प्रेमियों के खत का,
तो माहौल अलग था।
उनका डाकबाबू से
संवाद अलग था।
उनके खत को बहुत
सलीके से लाया जाता।
सबसे छिपकर के उनको
खत पहुंचाया जाता।
वह खत ही जी लेने का ,
आधार होता था।
ऐसा भी था वक्त कि ।
खत से प्यार होता था।

डा. पूनम पांडे

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