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8 Nov 2021 · 1 min read

इश्क़ से इंकलाब तक

जिस्म की हो या ज़ेहन की
तुम तोड़ डालो हर ज़ंजीर!
खोखली इबादत से नहीं,
मेहनत से बनती तक़दीर!!
सरकार भरोसे भारत का
अब कुछ नहीं होने वाला
नौजवानों को ही उठकर
करनी होगी कोई तदबीर!!
कोरी लफ़्फ़ाज़ी के लिए
वक़्त नहीं अब मेरे पास
मुझे पढ़ने का शौक सिर्फ़
ख़ून से लिखी हुई तहरीर!!
ज़ुल्मत के इस निज़ाम को
देखना, फूंक डाले न कहीं
आज के उस सुकरात की
आग उगलती हुई तकरीर!!
मैं जान हथेली पर लेकर
निकला हुआ अपने घर से
ढूंढ़ने के लिए भगतसिंह के
सुनहरे ख़्वाबों की ताबीर!!
अपने बूटों तले रौंद रहे
आजकल जो अवाम को
शायद देखी नहीं उन्होंने
अभी बगावत की तासीर!!
जलते हुए सभी मूद्दों पर
बेबाकी से लिखते-लिखते
बन बैठा वह शायर एक
इंकलाब की ज़िंदा तस्वीर!!
वह अदब के सारे पैमाने
काटता जा रहा लगातार
उसके हाथों में पड़ते ही
क़लम हुई नंगी शमशीर!!
Shekhar Chandra Mitra
#अवामीशायरी #इंकलाबीशायरी
#चुनावीशायरी #सियासीशायरी

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