गज़ल

मिले छाँव उल्फत की जिससे उमर भर, शजर इक लगाने चले आइएगा।
रखी है ज़माने से महफूज दौलत, इसी के बहाने चले आइएगा।
मुझे खौफ किस बात की अब पड़ी है, कहा है किसी ने मुहब्बत खुदा है,
खुदा की कसम आपसे इश्क मुझको, कभी आजमाने चले आइएगा।
दिखाए गये ख्वाब करना हकीकत, वफ़ा से बड़ी चीज होती नही है,
कही बात जो आपने गुफ्तगू में, सभी को बताने चले आइएगा।
मरासिम महज वाकया ही नही है निबाहत यकीनन कदम दर कदम है,
जले उम्र भर लाख तूफान आए, शमा वो जलाने चले आइएगा।
यही आखिरी शेष तुमसे गुजारिश, अना की सदारत न हो ज़िन्दगी में,
कभी भूल से रूठ जाउँ अगर मैं, मगर तब मनाने चले आइएगा।
शेषमणि शर्मा ‘शेष’