जा रही दूर तू मेरे संसार से,

जा रही दूर तू मेरे संसार से,
कैसे कर दू विदा मैं तेरी प्यार से
संग संग तू रही पढ़ी प्यार से,
जीत में संग खड़ी तू लड़ी हार से
आज मुझसे बिछड़ने का वादा न कर,
तेरे बिन क्या करूं कैसे जाऊं किधर
अब ये भरता नही मन तुझे देख कर,
तेरे बिन क्या करूं अब में जाऊं किधर
संग जब जब रहे दिल को मिलता सुकूं ,
जीत तुझ बिन नही हार कैसे सकूं
संग तेरे में कांटो पे चलता रहा,
अब में कैसे चलूं गिरके कैसे उठूं
✍️कृष्णकांत गुर्जर