शीर्षक – कठपुतली सा मेरा जीवन

शीर्षक – कठपुतली सा मेरा जीवन
कठपुतली सा मेरा जीवन
रिश्तो के धागे इसकी सीवन।
हर रिश्ते ने खेला इससे
अपना दर्द कहूं मैं किससे।
हाथ विधाता के मेरी डोरी
कर्म फलों से भरी है बोरी।
किस्मत अपनी बांच रही हूं
कठपुतली सी नांच रही हूं।
मैंने सब की हर बात मानी
चाहत मेरी किसी ने न जानी।
हर रिश्ते के मुझसे बंधे हैं धागे
सब मुझसे क्यों दूर हैं भागे।
इन धागों से होती मुझे घुटन
क्या आजादी मिलेगी एक दिन।
चाह कर भी ना इनको तोड़ पाती
इनके चक्रव्यूह में फसती जाती।
सारा जगत एक रंग मंच हैं
हम सब उसकी कठपुतली हैं।
प्रभु अब कर दो इंसाफ तुम मेरा
क्यों कठपुतली सा भाग्य है मेरा।
रानी शशि दिवाकर,धनौरा, अमरोहा