गांँव का गणित

गाँव धन को धन नही कर पाते
रह जाते ऋण को ऋण ही करते।
बचा-जमा मूल घाटा घटा नही
बस गुणों को गुणा ही करते।।१
भाग को भाग दें तो भाग जाता
भागफल शहर को सस्ते भाव में।
अजब-गजब गणित गाँव का
रह जाता है शेष शून्य गांव में।।२
गाँव में एक में एक जोड़ने से
न ही दो और ना ग्यारह होते।
यहाँ एक में एक जुड़ने से भी
हम-दो एक ही है जैसे होते।।३
गाँववाले एक मुठ्ठी मिट्टी में
दो मुठ्ठी अनाज उगा देते।
इस दो मुठ्ठी भर से ही
इंसान-पशु-पंछी सभी चुगा देते।।४
पैदा करना ही होता गाँव को
खूब खाना अनाज घास-फूंस।
एक जानवर के लिए घास
तो एक जानवर के लिए घूस।।५
यहांँ बनता सूद शूल जैसा
चक्रवर्ती ब्याज चक्रवर्ती तूफान।
यहाँ लाभ-हानि के बीच
होता एक बराबरी का निशान।।६
गाँव के सीधे गाँववाले
चला तो खूब लेते हैं हल।
पर गाँव-गणित के सवालों का
ढूंढ ही नही पाते है हल।।७
टेढ़े-मेढ़े खेत में हल चला
पढ़ लेते खेत का रेखागणित।
खेत में कितना बीज है बोना
समझ लेते बीज का बीजगणित।।८
गांँववाले कभी गाँव को
ग्राम भी तो है कह देते।
फिर बड़बोले शहर खुद को
बिना टन कहे कैसे रह लेते।।९
शहर को तो ये गाँव-गंवार
देहाती-जजबाती एक जैसे लगते।
यही खुद तेजतर्रार शहरी
आये दिन एक दूसरे को है ठगते।।१०
शहर हर लेता निगल लेता
न जाने कितने गाँवों को।
रोक-बांध देता लौटते हुए
न जाने कितने पाँवों को।।११
गाँव में न नाप होती है
न गिनती ना ही होती तोल।
गाँव की गणित न खाता न बही
स्टाम्प पेपर से बड़े होते हैं बोल।।१२
गाँव का गणित नही गिनता
यहाँ दो और दो नही होता चार।
यहाँ मिल-बांट दान-पुण्य
और ‘दो और दो’ होता आचार।।१३
यहाँ कोई भी सूत्र-फार्मूला
या लगा लो प्रमेय-थ्योरम।
गाँव के गजब गणित में
न होता कभी भी इति सिद्धम्।।१४
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©जीवनसवारो, अप्रैल, २०२५.