/•• हे,राम सुनो ••/

/— हे,राम सुनो —/
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हे,
राम सुनो यह व्यथा मेरी
अब रोम-रोम शर्मिंदा है
— प्रभु कितने रावण मारोगे
हर तन में रावण ज़िन्दा है
कलियों की मुस्कान छीनी है
सहमी-सहमी डाली है
रक्तबीज बढ़ रहें धरा पर
भयाक्रांत वनमाली है
प्रतिमाओं से कैसे समझूं
शौर्य अभि तक जिंदा है
— प्रभु कितने रावण मारोगे,
हर तन में रावण ज़िन्दा है
मासूम मुखौटे चेहरे पर
भीतर क़ातिल मुस्कानें है
ज़ाल बिछाकर बैठे हैं
उपर से चिड़ियों के दाने
रक्त पिपासु मानव से
जहां भय से भरा परिंदा है
— प्रभु कितने रावण मारोगे
हर तन में रावण ज़िन्दा है
मायूस बगीचे रहते हैं
फूलों में जहां उदासी है
माथे पर चंदन का टीका
पैरों में मथुरा काशी है
उदर में मांस की बोटी भर
मानव बन रहा दरिंदा है
— प्रभु कितने रावण मारोगे
हर तन में रावण ज़िन्दा है
/—- क़लमकार —-/
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)✍️