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16 Feb 2024 · 1 min read

ज़ेहन हमारा तो आज भी लहूलुहान है

कभी ईमानदार फुर्सत से बैठिये
सामने आईने के और झांकिये आंखों में अपनी
कसम सेना देख पाएंगे
वो छुपा मुखौटे के पीछे का वो चेहरा
आईना जब देगा दिखा वो पल

छुपा के छल अपनी आँखों में लगा मुखौटा
वो मुस्कुराता सा ,
चेहरे पे लिए बर्फ सी वो बेजान मुस्कराहट
नकली किये थे कितने ही वायदे झूठे

हमारी ही आंखों का था
पर्दा वो गहरा इतना
ना देख पाया
आपके हाथों का छुपा खंज़र
दग़ा भी दिए आपने कुछ इस तरह
के दामन आपका दाग़दार ना हुआ
गोया ज़ेहन हमारा तो
आज भी लहूलुहान है

अतुल “कृष्ण”

Language: Hindi
107 Views
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