तेरे हृदय की पीड़ा का भान, बस एक तू हीं समझ पायेगा,

तेरे हृदय की पीड़ा का भान, बस एक तू हीं समझ पायेगा,
जो व्यक्त किया औरों के संग, पात्र व्यंग्य का तू बन जाएगा।
संवेदनशून्य हृदयों के मध्य, मृदु हृदय से चलता काज नहीं,
पाषाणता आँखों में बसा, तभी तो विजयी कहलायेगा।
अपनों के आवरण ओढ़े है शत्रु, विषाक्त शब्दवाण जो चलाएगा,
तू मौन का ढाल लिए खड़ा जो, अस्त्तित्व को छलनी पायेगा।
पथ पर तेरे हैं कांटे जड़े, ये किसी को ना दिख पायेगा,
हंसी के छल में छिपकर कोई, पीठ पर शूल चलाएगा।
हाँ पीड़ा रोकेगी साँसों को, और समय तुझे सताएगा,
पर दामन विश्वास का थाम कर चलना, दिन सबका इक दिन आएगा।
तू तो यात्री है वैरागी राहों का, विष सांसारिक तुझे क्या भटकायेगा,
रम जा तू पलों के प्रेम में यूँ, संवेदनहीन भी ईर्ष्या में जल जाएगा।