त्रेता के श्रीराम कहां तुम…

त्रेता के श्रीराम कहां तुम…
त्रेता के श्रीराम कहां तुम
फिर से तो धरा पर आ जाओ
कलियुग कल्प हुआ अति दुष्कर
तुम देर ना अब लगा जाओ…
त्रेता के श्रीराम कहां तुम…
नैन हुआ है अधीर यहां पर
क्या देख रहे करुणासागर
पग पग धरा प्रपंच प्रथित है
विष्णु शेषनाग शय्या त्यागो…
त्रेता के श्रीराम कहां तुम…
पीर पहाड़ अपनी बस जाने
पर पीड़ा से सब रहे अंजाने
एक बार फिर आकर धरा पर
धर्म-कर्म का अर्थ बतला जाओ..
त्रेता के श्रीराम कहां तुम…
मन कलुषित भाव पंकिल है
मर्यादा क्या, सब तुमसे सीखें
कहता है जग तुझे पुरुषोत्तम
तुम कल्कि रुप बनकर आओ…
त्रेता के श्रीराम कहां तुम…
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २०/०२/२०२५
फाल्गुन ,कृष्ण पक्ष, सप्तमी तिथि,बृहस्पतिवार
विक्रम संवत २०८१
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