नैसर्गिक जो भी रहे, कब खोजें सम्मान।

नैसर्गिक जो भी रहे, कब खोजें सम्मान।
निज नैनों से देख लो, उगते सूर्य महान।।
अभिधा जिनकी चाह हो, वो कब है दिनमान।
ज्ञानी रावण को लखें , हे कविवर गुणवान।।
संजय निराला
नैसर्गिक जो भी रहे, कब खोजें सम्मान।
निज नैनों से देख लो, उगते सूर्य महान।।
अभिधा जिनकी चाह हो, वो कब है दिनमान।
ज्ञानी रावण को लखें , हे कविवर गुणवान।।
संजय निराला