माता का हाथ
///माता का हाथ///
हे ! मातेश्वरी सरस्वती
तुम्हारी शुचि प्रेरणा
उससे उद्भाषित आलोक पथ
व तुम्हारे हृदय-स्पंदन-स्नेह
हमें देते हैं आत्मतोष।।
जीवन का सुमंगल गीत
तुम्हारे ही अंतर हृदय से उठता है
और तुम्हारी आनंदमयी प्रतिमा
जिसका चितवन कर
हमें अनुभूति होती है
तुम्हारे परम देवत्व की।।
वह देवत्व
जिसने सारे विश्व को प्रेरणा दी
साध्य दिखाया साधन खोजा
और ले चलता साधना पथ पर
तुम्हारा यह प्रेम पूरित हृदयागार
मानव के प्राणों को
डूबो लेता है ज्ञान तत्व में।।
प्राण तुममें डूब कर ही
पाते हैं जीवन सुधा
यह सुधामय प्रेम निमज्जित श्रृंखला
जो परम संबल है
परमानंद का चिदानंद का
जिसके विस्तीर्ण पट ने
समा लिया है संपूर्ण
आकाश को चराचर वरिमा को
वह तत्व रूप तुम
परम पवित्र अखंड आदि अंतहीन ।।
तुम्हारा परम शुचि मातृत्व
हमें देता रहे आलोक पथ
पवित्र संवेदना व सत्व साधना का
और हम हो सकें एकाकार
असीम में अनंत में परम शून्य में
जो कारणों का भी कारण है
और कारणातीत है।।
मातेश्वरी!
तुम्हारे वीणा की नीरव ध्वनी
जिसकी हम उपेक्षा करते रहे
अब हमें सामर्थ्य दीजिए
हाथ बढ़ाइए
और हमें कह लेने दो
मां मां मां…
हम तेरे अबोध शिशु मात्र हैं।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)