नहीं है प्यार मेरा
गर भाग्य मेरे तू नहीं कर एक रेखा खींच दूँ
अपने वफ़ा की जमीं को रक्त से मैं सींच दूँ
पाट दूँ मैं नभ तलक रकीबों की लाश को
मगर तुम न तोड़ना मेरे अटल विश्वास को
मेरा अटल विश्वास है तुम हो मेरी बस मेरी
हर समय दिल को सुनाई दे रही आहट तेरी
और क्या , मालूम मुझको हैं हजारो ही रकीब
और ये मर्जी तुम्हारी जाती तुम किसके करीब
और फिर ये जानता हूँ कितना है अधिकार मेरा
हीर औ’ रांझा सरीखा तो नहीं है प्यार मेरा
एक तरफा प्रेम मेरा पल रहा नादान जैसा
ज़ो तुम्हारी बेरुखी से हो रहा तूफान जैसा
सोच लो ये प्रेम मेरा कहीं बन जाए न मयकश
तीर कितने ही भरे हैं तीक्ष्ण और विषधार तरकश
फिर तुम्हारा साथ हो या वियोग हो भाग्य मेरा
पूर्ण होकर ही रहेगा प्रेम का ये यज्ञ मेरा
झोंक दूँगा यज्ञ में फिर रकीबो को सर कलम कर
और फिर ये रूप मेरा रुद्र सा होगा प्रलयंकर
प्रेम के उस समर में कोई नहीं तेरा दिखेगा
कहीं हो प्रेमी तुम्हारा आ धरा पर ही गिरेगा
चाहते संग्राम में फिर आई तुम भी सामने तो
प्रेम की शमशीरें खिचकर कहेगी कि वध करो
और फिर मैं क्या करूंगा चाहकर भी तुम ही बोलो
हुस्न औ यौवन के नशे में अभी रुत है खूब डोलो
मगर तुम ये याद रख लो , प्रेम के उस अटल रण में
हुस्न को सौ टुकड़े करके , फेंक दूंगा उस गगन में
चाँद भी लाली लपेटेगा तुम्हारे रक्त से
और फिर मैं घिर जाऊंगा ,रुहघाती वक्त से