आँगन की, बिन आपके, सूख रही है दूब।
आँगन की, बिन आपके, सूख रही है दूब।
छोड़ छाड़ कर नौकरी, आ जाओ महबूब।।
विरह पराकाष्ठा विविध,नहीं दूसरी और।
किया वेदना पर अगर ,महबूबा की गौर।।
रमेश शर्मा.
आँगन की, बिन आपके, सूख रही है दूब।
छोड़ छाड़ कर नौकरी, आ जाओ महबूब।।
विरह पराकाष्ठा विविध,नहीं दूसरी और।
किया वेदना पर अगर ,महबूबा की गौर।।
रमेश शर्मा.