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31 Aug 2024 · 1 min read

क्या पता वाकई मैं मर जाऊं

जब मेरे होंटो से एक
शब्द ना निकले और
मैं तुम्हे एक शब्द भी
कहने में कतराऊं

तो समझना मैं किसी
बात से सहम गया हूँ
मगर
मेरी इस सहमा-सहमी में
तुम मेरा अहम मत ढूंढना
पता नहीं किस ठेस से मर
मैं जीते जी मर जाऊं

वक्त रहते मैं सम्भाल
पाऊँ खुद को बस
इतना सा वक़्त दे देना

तुम जो जल्दबाजी में
अगर चले गए कभी
तो क्या पता वाकई
मैं मर जाऊं
©अंकित कुमार पांचाल

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