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28 Apr 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

अब दे नही सकेगा कोई भी दगा मुझे
सबने बनाके रख दिया है आईना मुझे

नज़रों को लग गयी है नज़र उनकी अदा से
नज़रों ने किया उन पे इस क़दर फ़िदा मुझे

मैं हूँ ज़माले ज़िन्दगी गुमनाम फ़साना
मुझको पढ़ेगा जिसने है दिल से सुना मुझे

आदत है इस तरह उसे मेरे यकीन की
करता मुआफ़ देके वो अक्सर सजा मुझे

उसको मिलेगी कैसे खुशी मेरे नाम से
समझा है जिसने दर्द का इक सिलसिला मुझे

सोहबत में जिसके रहके तराशी है ज़िन्दगी
कहने लगे हैं लोग उसी की ख़ता मुझे

रोशन करें वफ़ा जो ‘महज़’ मेरी निगाहें
अब क्या फ़रेब देगा कोई बेवफ़ा मुझे

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