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29 Jun 2016 · 1 min read

गज़ल/गीतिका (समय ये आ गया कैसा)

गज़ल/गीतिका (समय ये आ गया कैसा)

दीवारें ही दीवारें , नहीं दीखते अब घर यारों
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले हैं

उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं

जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं

जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है

मिलता अब समय ना है , समय ये आ गया कैसा
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं

मदन मोहन सक्सेना

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