जीव सदा जग में बेचारा

जीव सदा जग में बेचारा
काल चक्र से जो है हारा
नियति यही है जीवन प्यारे
व्यर्थ रहे तुम विस्मित सारे
जी ले जीवन क्यों तू खोये
बैठ जहाँ में हरदम रोये
फिर ये मौका आये न दुवारे
व्यर्थ रहे तुम विस्मित सारे
सृष्टि चले जिसके ईशारे
अंश सभी है उसके प्यारे
व्यर्थ रहे तुम विस्मित सारे
_संजय निराला